MacArthur Foundation_Shailaja Paik: दलित प्रोफेसर शैलजा पाइक को मिला $8,00,000 का मैकआर्थर अवार्ड..!

MacArthur Foundation_Shailaja Paik: दलित प्रोफेसर शैलजा पाइक को मिला $8,00,000 का मैकआर्थर अवार्ड..!

शैलजा पाइक 'जीनियस ग्रांट' कहे जाने वाले मैकआर्थर फेलोशिप पाने वाली पहली दलित महिला बन गई हैं।

MacArthur Foundation_Shailaja Paik: पुणे के येरवडा की झुग्गी-झोपड़ी से लेकर अमेरिका में प्रोफ़ेसर बनने तक का बेहतरीन सफ़र तय करने वाली शैलजा पाइक अब प्रतिष्ठित ‘मैकआर्थर’ फ़ैलोशिप पाने वाली पहली दलित महिला बन गई हैं । अध्ययन करने के लिए उन्हें 800,000 डॉलर (लगभग 67 लाख रुपये) की राशि मिलेगी शैलजा पाइक ने अपने शोध अध्ययन के माध्यम से दलित महिलाओं के जीवन को गहराई से प्रस्तुत किया है।

भारतीय मूल की इतिहासकार शैलजा पाइक (Shailaja Paik) ने इतिहास रच दिया है। प्रोफेसर पाइक को मैकआर्थर फाउंडेशन (MacArthur Foundation) ने “जीनियस ग्रांट” से नवाजा है। इसके तहत उन्हें 800,000 डॉलर (लगभग 67 लाख रुपये) की राशि मिलेगी। आधुनिक भारत में दलित अध्ययन, जेंडर और यौनिकता पर अपने काम के लिए मशहूर प्रोफेसर शैलजा पाइक मैकआर्थर फेलोशिप हासिल करने वाली पहली दलित हैं।

कौन हैं शैलजा पाइक/ Shailaja Paik

मैकआर्थर फाउंडेशन का “जीनियस ग्रांट” हर साल शिक्षा, विज्ञान, कला जैसे क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने या प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। प्रोफेसर शैलजा पाइक (Shailaja Paik) के महाराष्ट्र के येरवड़ा में एक स्लम से लेकर सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद तक पहुंचने की कहानी दिलचस्प है। प्रोफेसर शैलजा पाइक का परिवार मूल रूप से महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले से हैं। 1990 के आसपास वहां से पलायन कर पुणे आना पड़ा, क्योंकि गांव में उन्हें जातिगत भेदभाव झेलना पड़ा था।

एक इंटरव्यू में शैलजा पाइक (Shailaja Paik) अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि एक बार जब वह अपनी दादी के साथ एक ऊंची जाति के परिवार से मिलने गईं तो उन्हें जमीन पर बैठने को कहा गया और मिट्टी के कप में चाय दी गई , जबकि ऊंची जाति की महिला कुर्सी पर बैठी थी। इससे उन्होंने अपमानित महसूस किया।

झुग्गी बस्ती से अमेरिका तक का सफर।

शैलजा पाइक का परिवार पुणे के येरवड़ा के एक झुग्गी बस्ती में 20 फिट के कमरे रहने लगें। प्रोफेसर पाइक यहीं तीन बहनों के साथ पली-बढ़ीं। स्कूली पढ़ाई लिखाई के बाद उन्होंने पुणे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की, फिर साल 2007 में वारविक यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की । साल 2008 में उन्हें यूनियन कॉलेज में हिस्ट्री का विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त किया गया , फिर येल यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन हिस्ट्री की पोस्ट डॉक्टरल एसोसिएट और विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर बनीं। इसके बाद सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी आ गईं।

शैलजा पाइक साल 2010 से सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ी हैं। यहां हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं। उनकी किताब ‘दलित वूमेन्स एजुकेशन इन मॉडर्न इंडिया: डबल डिस्क्रिमिनेशन / Dalit Women’s Education in Modern India: Double Discrimination’ खासी चर्चित रही है। इसमें महाराष्ट्र में दलित महिलाओं के संघर्ष का विस्तार से जिक्र है। इसके अलावा ‘The Vulgarity of Caste: Dalits, Sexuality, and Humanity in Modern India भी खासी चर्चित किताब है।

क्या है जीनियस ग्रांट (मैकआर्थर फेलोशिप)?

मैकआर्थर फेलोशिप को आम तौर पर जीनियस ग्रांट के रूप में जाना जाता है। यह फेलोशिप शिक्षा, विज्ञान, कला और समासेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को प्रदान की जाती है, जोकि फाउंडेशन के अनुसार असाधारण रूप से प्रतिभाशाली और रचनात्मक व्यक्ति होते हैं, जो अपनी क्षमता का निवेश करते हैं।

ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, फेलोशिप के लिए चयन अज्ञात रूप से प्राप्त सिफारिशों के आधार पर किया जाता है। बगैर एप्लीकेशन और लॉबिंग के यह अनुदान दिया जाता है, जो प्राप्तकर्ताओं को बिना किसी शर्त के पांच वर्षों में प्रदान किया जाता है। 1981 से अब तक 1,153 व्यक्तियों को मैकआर्थर फेलोशिप प्रदान की जा चुकी है।

इस फेलोशिप के कुछ उल्लेखनीय पूर्व प्राप्तकर्ताओं में लेखक रूथ प्रॉवर झाबवाला और वेद मेहता, कवि एके रामानुजन और अर्थशास्त्री राज चेट्टी और सेंधिल मुल्लैनाथन शामिल हैं।

“महिलाओं में निवेश करें-प्रगति में तेजी लाएं”

 

 

 

 

 

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